Saturday, January 7, 2017

माँ तेरी क्या शक्ति?

जब देवी ने अवतार धरा,
दशों दिशाओं ने हुंकार भरा ।
देवताओं के कल्याण को आयी,
काली ने महिषासुरा को हरा ।।
नन्ही परी के पैरों की चाप से,
घर का आँगन गूँज उठा ।
धूप भी जिसे मिटा ना सकी,
वो अंधियारा लौट चला ।।
नाम घर का ले गयी शिखर पर,
हर कसौटी पर अंकित हुई ।
लड़की बेटा बनती रही,
हर अपेक्षा पूरी करती रही ।।
सफलता की उँचाई पर,
ज़माना थपकी देने लगा ।
अब तो गली वाले भी कहने लगे,
बेटी तू बेटे से थोड़ी ज़्यादा ही लगे ।।
बन गयी वो सबसे चोखी,
मात खायी एक पशु समान प्राणी से ।
रात की अनवरत गहराई में,
बस हार गयी अपने नारित्व से ।।
भूख मिट गयी पशु की,
रह गयी मात्रा हाड़ का ढाँचा ।
बेटे से तो जीत गयी,
हार गयी अपने ही नारित्व से ।।
माँ तेरे पास था खड़ग त्रिशूल,
बेटी को वांच्छित करा कवच से ।
आज तेरा स्वरूप पृथ्वी पर,
नित्य हारता है, अपने ही नारित्व से ।।
सीता को मैला समझा सभी ने,
यज्ञसैनी को रौंदा जग ने ।
सिंह सवारी जिसे कहते हैं,
आज हार गयी अपने ही नारित्व से ।।
बेटी के जन्म पर रुन्दन होता है,
क्या तू नहीं रोती जब उसका रौंदन होता है ।
क्या मंशा थी तेरी अपनी बेटी से,
यही, कि वो हार जाए अपने ही नारित्व से ।।
उत्तर ना दे पाओगी तुम अपनी ही नीति का,
हार गयी हो माँ, सम्मान अपनी बेटी का ।
बस नाम की कन्या, लक्ष्मी या दुर्गा,
माँ तुम हार रही हो…
हर पल, हर क्षण, हर गली, हर मोड़,
हाँ मां तुम हार गयी,
सृष्टि की जननी हार गयी, ना भूचाल से, ना आसुरी तत्व से..
तूने तो मात खाई है, अपने ही नारित्व से ।।