Monday, December 25, 2017

वाजपेयी की धुंधली विरासत




राजनेता की परिभाषा हो,
मर्यादा की अभिव्यक्ति तुम |
क्यों पक्ष विपक्ष तुम्हारी मनुहार लगता है?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

हर तर्क में राष्ट्र वफ़ा अधिकतम थी,
राजनिति में निति को जीवित रखते तुम |
क्यों करना पड़ा निष्ठा पुरुष को राजनीतिक संघर्ष?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

भरी सभा में नारी को दुर्गा मान लिया,
विफलता से नहीं कतराते तुम |
कैसे राम रहीम का तराजू संभाला तुमने?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

निजी जीवन का बाजार लगाया नहीं,
संतता का आडम्बर नहीं करते तुम |
कैसे मानव कलंक को नैतिक करा तुमने ?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

राजनीति की मैली चादर भी मैला कर न सकी,
रथ के पहिये से भी चोटिल हुए नहीं |
क्या करते छल कपट का खेल खेलकर?
जब किसी दल-दल में ही नहीं थे तुम ||

विरासत उनको सौंप दी, जिनको राजधर्म पढ़ाते थे,
नज़र न झुकाओ अटल, द्रोणाचर्या के शिष्य भी दुर्योधन थे |
कैसे दे देते २००२ के संघार को अनुज्ञा?
जब किसी दल-दल में ही नहीं थे तुम ||

भेजो अपना दूत अति शीघ्र,
पीड़ा में माँ, नित ये गुहार लगाती है |
कैसे रोकोगे कमल को विकार की छीटों से?
अब तो कहो, शब्दों के कारीगर,अपने शिष्यों के दल में नहीं हो तुम ||

अपने शिष्यों की नीति में नहीं हो तुम ||
अपने शिष्यों की युक्ति में नहीं हो तुम ||
अपने शिष्यों की रणनीति में नहीं हो तुम ||