Monday, December 25, 2017

वाजपेयी की धुंधली विरासत




राजनेता की परिभाषा हो,
मर्यादा की अभिव्यक्ति तुम |
क्यों पक्ष विपक्ष तुम्हारी मनुहार लगता है?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

हर तर्क में राष्ट्र वफ़ा अधिकतम थी,
राजनिति में निति को जीवित रखते तुम |
क्यों करना पड़ा निष्ठा पुरुष को राजनीतिक संघर्ष?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

भरी सभा में नारी को दुर्गा मान लिया,
विफलता से नहीं कतराते तुम |
कैसे राम रहीम का तराजू संभाला तुमने?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

निजी जीवन का बाजार लगाया नहीं,
संतता का आडम्बर नहीं करते तुम |
कैसे मानव कलंक को नैतिक करा तुमने ?
वो किसी दल-दल में नहीं न थे तुम ||

राजनीति की मैली चादर भी मैला कर न सकी,
रथ के पहिये से भी चोटिल हुए नहीं |
क्या करते छल कपट का खेल खेलकर?
जब किसी दल-दल में ही नहीं थे तुम ||

विरासत उनको सौंप दी, जिनको राजधर्म पढ़ाते थे,
नज़र न झुकाओ अटल, द्रोणाचर्या के शिष्य भी दुर्योधन थे |
कैसे दे देते २००२ के संघार को अनुज्ञा?
जब किसी दल-दल में ही नहीं थे तुम ||

भेजो अपना दूत अति शीघ्र,
पीड़ा में माँ, नित ये गुहार लगाती है |
कैसे रोकोगे कमल को विकार की छीटों से?
अब तो कहो, शब्दों के कारीगर,अपने शिष्यों के दल में नहीं हो तुम ||

अपने शिष्यों की नीति में नहीं हो तुम ||
अपने शिष्यों की युक्ति में नहीं हो तुम ||
अपने शिष्यों की रणनीति में नहीं हो तुम ||










Tuesday, October 10, 2017

जे.पी थोड़ा रुक जाओ, हमारा भारत अभी बना नहीं

जे .पी थोड़ा रुक जाओ, 
हमारा भारत अभी बना नहीं  |

नादानो को दिशा दिखा दो,
गुलामी का अँधियारा छटा नहीं  ||

जे.पी की निष्ठा देश से थी, सत्ता से नहीं ,
जे.पी की दोस्ती हर दल में थी, दलदल से नहीं |

बर्तन धो कर पेट भरा, पर विवेक बेचा नहीं,
महिला सम्मान की परिभाषा बदली, खुद से कम समझा नहीं |

जेल में रातें गुज़ारी, पर आकाँक्षाओं को त्यागा नहीं,
शुक्ला के कंधे चढ़े, पर हार से समझौता करा नहीं |

नेहरू को फटकारा, आपात में भी डगमगाए नहीं,
भारत रत्न हो, मात्र संपूर्ण क्रांति का नारा नहीं |

लोहिआ अच्युत को निखारा, हाशिये को उपनगर देखा नहीं ,
प्राथमिकता समाजवाद था, फिर भी अन्य विचारों को नाकारा नहीं |

गलियारों की सफाई करी, खुद मैले हुए नहीं,
ना कवच धरा ना कमंडल, पर शिष्टाचार से डिगे नहीं |

बापू के शिष्य बने, अंध भक्ति सुहाई नहीं,
लोकतंत्र को मूल माना, विदेशी अनुकरण लुभाया नहीं |

बिहार में धरना दे बैठे, किसी का दबाव सुना नहीं,
करो स्वच्छ इस व्यवस्था को, तुमसा कोई ज़िद्दी नहीं |

स्वराज के फितूर में, राजनीति खेली नहीं,
सुव्यवस्था की चेष्टा में, सिंघासन के रण में उतरे नहीं |

जे.पी का भारत सबका था, कुछ कोशों का नहीं,
जे.पी का भारत सम्मिलित था, मनु - मोहम्मद अनन्य नहीं |

जे .पी थोड़ा रुक जाओ, 
हमारा भारत अभी बना नहीं  |

नादानो को दिशा दिखा दो,
गुलामी का अँधियारा छटा नहीं  ||

जय हिन्द !!
Jai Hind! 





Monday, September 18, 2017

गौरी लंकेश की समयोचित मृत्यु

न तुम बिकते, न हमसे बिकने की उम्मीद होती |
न तुम डरते, न हमें डरने की ज़रुरत होती |
न तुम समझौते करते, न हमसे समझने की उम्मीद होती |
न तुम घुटने टेकते, न हमें मरने की ज़रुरत होती |

जिस प्रतिभाशाली पत्रकार को हमने खोया उसका नाम तो गौरी था, लेकिन साहस दुर्गा का था | निडरता का प्रतीक, गौरी लंकेश के दोस्त कम थे, समर्थक कई, और दुश्मन अनेक | पी लंकेश, जो पत्रकारिता में एक चिरस्थायी नाम हैं, उनकी बेटी थी गौरी लंकेश | गौरी बंगलुरु में अपनी साप्ताहिक पत्रिका, "गौरी लंकेश पत्रिके" का सम्पादन करती थी |

पत्रकारों और स्वतंत्र विचारों का उल्लेख करने वालों का ऐसा अंत नया नहीं है; बल्कि कई बार इन आवाज़ों को खुद उनके इस बर्बर हश्र का ज्ञात होता है | भारत आज उस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है, जहाँ समाज में झूठ का बाजार गर्म है, आलोचनात्मक आवाज़ ठंडी, कट्टरवादियों की आवाज़ मज़बूत और स्वतंत्र लेखन व् पत्रकारिता की हुंकार निस्तब्ध | क्यों हर उस आवाज़ को, जिसके स्वर में एक प्रश्न का अन्तर्भाव होता है, उसको विधर्मी संघ सदा के लिए शांत कर देते है? गौरी लंकेश की हत्या के पीछे असहिष्णुता तो अवश्य थी, परन्तु क्या बस इतना भर कहने से, हम अपनी ज़िम्मेदारियों से भारमुक्त हो जाते हैं ? गौरी लंकेश की हत्या, पत्रकार जगत के लिए चेतावनी का बिगुल है | आग मोहल्ले में लगी थी, और आज उसकी लपटों ने बगल वाले घर को भी ध्वंस कर दिया |
जिनको जान प्यारी है, वह घर छोड़ देंगे, और जिनमें लंकेश की शूरता है, वह आग बुझा देंगे |


लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है, "मीडिया" | सूचना का संचार करता है, और आम जनता की आँख और कान मीडिया होती है | सरकार, प्रशासन, न्यायलय - सब का काला चिट्ठाखोलने का बलबूता इस स्तम्भ पर होता है और यही संभव सामर्थ्य, मीडिया को लोकतंत्र के अखाड़े में खेलने वाले विकृत कुकर्मियों का दुश्मन बना देता है | ऐसा क्या होता है, जब गौरी जैसा एक निडर पत्रकार, नागरिकों में जागरूकता की मुहीम चलता है? सत्ता तिलमिला जाती है, और इन आवाज़ों को दबाने के लिए हर सही गलत, वैद्य-अवैद्य हथखण्डे अपनाती है | कुछ आवाज़ें बिक जाती हैं, जिन्हें माननीय रविश कुमार गोदी मीडिया के नाम से सम्बोधित करते हैं, और कुछ लंकेश हो जाती हैं |

गोदी मीडिया न बिकता, तो आज गौरी की कीमत लगने की बात ही नहीं उठती
गोदी मीडिया न बिकता, तो गौरी से चुप्पी की आस ही नहीं लगती
गोदी मीडिया न बिकता, तो पत्रकारिता में सत्यऔर "असत्य सत्य"  की दीवार ही नहीं खड़ी होती |

लंकेश की मौत इस सच को दबा नहीं सकती, कि पत्रकारिता की ताकत बरकरार है, और सत्ता को ये बात खटकती है | अफ़सोस है, आज कुछ लोग इस ताक़त का सकारात्मक प्रयोग करने से डरते हैं, कुछ हिचकिचाते हैं, और कुछ इसे बेशर्मी से बेच देते हैं

कलम की ताक़त को सिक्कों के तराज़ू में तौलने वालों के लिए, गौरी की मृत्यु एक तकाज़ा है, आज जो तुम्हे खरीद रहे हैं, वही कल तुम्हे बेच देंगे |

किस किस के हाथ, अपनी कलम बेचोगे, किस किस के झूले पर तुम्हारी निष्ठा झूलेगी? या हम यूं समझ लें, पत्रकारिता, सत्ता की आवाज़ है? गौरी की मृत्यु के ज़िम्मेदार असहिष्णु वाहिनी नहीं, दुकान में सजी, बिकने को आतुर, पत्रकारिता है, जिसने इस पेशे पर नैतिकता के परे, छोटी सी कीमत लगा दी |

पत्रकारों से अपेक्षाएं बदल गयी है | सूचना संचार, और अपक्षपाती व्याख्या करने वाले पत्रकारों को या तो झूठे फसादों में फसा दिया जाता है, या घिनौने आरोप लगाकर उनको प्रश्न चिंह्नों से दगा जाता है, या उनको गोलियों की बौछार में भिगो कर, सदा के लिए मौन करा दिया जाता है | आज जो गौरी के साथ हुआ, वो कल तुम्हारे साथ होगा | जब सत्ता बदलेगी, वह तुम्हे भी नहीं बख्शेगी

इससे पहले पत्रकारिता के नए रवैये सर्व व्यापक हो जाएँ, और पाँच साल बाद, तुमको भी एक वीरगति के घाट उतार दें, थाम लो एक दूसरे का हाथ और अपने पेशे पर लगे आपातकालीन को उखाड़ फेंको |

Sunday, September 17, 2017

जानवर हो क्या? अफ़सोस, इंसान हैं |

आज सड़क पर एक आदमी को दूसरे से, गुस्से में कहते सुना, "जानवर हो क्या", और मेरे दिल से आवाज़ आयी, काश होते | हम इंसानो को हमारे इंसान होने पर इतना फक्र क्यों होता है? ऐसा क्या हांसिल कर लेते है हम इंसान, जो चार पैरों पर चलते जानवर नहीं कर पाते?
हल्की आन, खोखली बान और झूठी शान? नसीहत देने की प्रतिभा, मुफ्त के ठाट बटोरने की अभिलाषा, और अपनी ही रिवायतों में जकड़ के दम तोड़ने की तृष्णा?

जितनी सच जानवरों की जाहिल पहचान है, उतनी ही सच उनकी सच्चाई है | वो ना तो साहिर बनने का दावा करते हैं, ना तो बात बात पर मुआफज़ा मांगते हैं | मज़हब से उनका दूर दूर तक नाता नहीं | कभी पूर्णमासी का सीधा खा कर  तो कभी बची हुई इफ्तारी से अपना पेट भर लेते हैं, | बारिश होने लगती है, तो खोज बस एक चबूतरे की होती है, फिर वह चाहे जुलाहे के घर में हो, मंदिर के दालान में, या हकीम के दवाखाने में |
जानवरों की निश्चलता और इंसानो के पेचीदेपन में रक़ाबत हो तो जीत मासूमियत की होगी, वही मासूमियत जिसे हम इंसान बहुत दूर छोड़ आये हैं | शायद आज जिस मोड़ पर हम इंसान खड़े हैं, उसके हम खुद मुश्ताहिक़ हैं |

हमने जानवरों को मारा अपनी भूख मिटाने के लिए, इंसानो को जलाया अपनी सियासत बचाने के लिए, और फिर खुदा के इतने हिस्से कर दिए, कि आज हम अपने खुदा को पहचानने में नाकाम हैं | कब हम इंसान, उस जानवर में तब्दील हो गए, जिसकी पहचान नफरत और बेदखली के काबिल थी?

हाँ जानवर आपकी हमारी तरह :

  • कपडे नहीं पहनते, लेकिन ये भी सच है, कि रेशमी परदे के पीछे अपनी सच्चाई नहीं छुपाते |
  • आलिशान घरों में नहीं रहते, लेकिन ये भी सच है, कि ज़रुरत से ज़्यादा जगह में नहीं पसरते |
  • रोज़ पेट भरने की जद्दो जहद करते हैं, लेकिन ये भी सच है, कि से अधिक नहीं खाते |
  • किसी तय ठिकाने पर नहीं मिलते, लेकिन ये भी सच है, कि ज़मीन के किसी कोने पर अपना हक़ नहीं जमाते |

जिस खुदा ने हमें इंसान बनाया, आज हम उसकी खुदाई को ललकार कर, खुद को खुदा मान बैठे हैं | हम वो हैं, जो जानवरों की बिरादरी को नीच समझते हैं, खुदा का सहूलियत से इस्तेमाल करते हैं, और इंसानियत को लापरवाही से खर्च कर, कंगाल हो चुके हैं |

आज जब हम कहते हैं, "जानवर हो क्या", तो वास्तव में इसका जवाब हैं, नहीं, हम जानवर नहीं हैं, हम इंसान हैं, जिन्हे अपने इंसान होने भर पर गुरूर है |
अफ़सोस है, हम जानवर, कभी हो भी नहीं सकते हैं |

Friday, September 1, 2017

Tribute to Dushyant - तुम कब दुष्यंत को जानोगे?



राजनीति का खेल जीत गए,
राज धर्म कब निभाओगे |
सत्ता की चढ़ाई चढ़ गए,
सत्य पताका कब फेहराओगे ||

लफ़ाज़ी से उर्जित हैं ये दीवारें,
त्राहि कब उजाड़ोगे |
अनवरत वादे हुए मासूमों से,
धूर्तता कब त्यागोगे  ||

कई तख़्त बैठे यहां पर,
धर्मासन कब बिछाओगे |
अनेक नेता आये इस मंच पर,
सुकर्मी से कब मिलवाओगे ||

आरोपों की झड़ी में फिसले हैं सब,
विकृत बखिया कब उधेड़ोगे |
अनैतिकता के खारे दरिया में ,
शुचिता कब मिलाओगे ||

दुष्यंत को वक़्त की सुई ने दफ़ना दिया,
तुम कब दुष्यंत को जगाओगे ||

तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे
तुम तब दुष्यंत को मानोगे ||

तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे
तुम कब दुष्यंत को देखोगे, 

तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे
तुम तब दुष्यंत को जानोगे ||










Tuesday, August 29, 2017

Don't Criminalize Marital Rape

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥
~Manusmriti
The divine are extremely happy where women are respected ;where they are not, all actions (projects) are fruitless.


विवाह की परिभाषा पिछले कुछ दशकों में ऐसे दौर से गुज़री है कि उसकी काया पलट हो गयी  है | एक प्यार की रस्म से सामाजिक रिवाज़ और अब एक संस्था | मेरे दादी बाबा के लिए विवाह एक जन्म जन्मांतर के रिश्ते की शुरुआत का प्रतीक था | मेरे माता पिता के लिए, एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद बंधन, और अफ़सोस, मेरी पीढ़ी के लिए, महज़ एक संस्था | जिस तीव्र गति से रिश्तों के मायने बदलत गए, समाज के लिए अनिवार्य हो गया, कि विवाह को एक संस्था का दर्ज़ा दिया जाए | विवाह की आधुनिक संस्था की नींव निर्धारित नियम, कायदे कानून, और एक संगठनात्मक प्रकृति पर रखी गयी है | विवाहित जीवन की रस्मों में एक सामान्य सूत्र है, रिश्तों के संरक्षण का एक वो भरसक प्रयास, जो खुद में, विवाह के समीकरण के विपरीत है | विवाह द्वारा जुड़ा रिश्ते की स्वाभाविक प्रगति नहीं हुई, तो उसे सकारात्मक सफ़र नहीं, नकारात्मक घसिटना समझिये |

दो अजनबी, अगर एक छत के नीचे साथ रह कर भी संग नहीं हैं, तो उनके अजनबी बने रहने में ही दोनों के जीवन की बेहतरी है | उनके मानसिक ताल मेल में पटरी न बैठी, तो रिश्ता अपाहिज हो जाता है | रिश्ता होता तो है, पर उसके बोझ से दोनों प्रतिभागियों की कमर चरमरा जाती है | आरोप-प्रत्यारोप, भावुक अशांति, और कलह का जो अनंत सिलसिला आगाज भरता है, वह न सिर्फ पति पत्नी, बल्कि पूरे परिवार को बहुआयामी क्षति पहुंचाता है | नज़र उठा कर देखिये, कितने घरों की समृद्धि को रिश्तों के तूफ़ान ने अपने गगनभेदी गर्जन में सदा के लिए लुप्त कर दिया | अगर विवाह का उद्देश्य हर्ष की वृद्धि है, तो ये विवाह, जिन पर शुबहा के धब्बा और क्लेश की दीमक लग चुकी है, बेमाने हैं, और इनको एक सौहार्दपूर्ण बिदाई देना ही उचित हैं |

जहां तक वहशी पति की प्रताड़ना पर सज़ा सुनाने की बात है, और Marital Rape को गैर-कानूनी घोषित करने की मुहीम है, तो क्षमा करियेगा, मैं इस मुहीम से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखती हूँ | मनुष्य का मन चंचल है, और भावनाएं अस्थिर | अशिक्षित समाज, जहां कच्ची उम्र में शादियां हो जाती हैं, वहां यौन ज्ञान का इतना आभाव है, कि मुझे निजी तौर पर लगता है, Marital Rape एक पेचीदा मसला है, और हमारा देश व समाज इसको समझने और अपनाने के लिए फिलहाल सक्षम नहीं है Marital Rape की पीड़िता को तत्कालीन तलाक़ का अधिकार मिलना अनुरूप है, परन्तु पति को सज़ा सुनाना अतिक्रमण है | कई बार, हम कुछ ऐसे निर्णय ले लेते हैं, जिनका अभिप्राय भी हमें ही पता होता हैं, और उनके पीछे की बेहूदी नियत भी | ये तो ठहरी किसी के शयनागार की दास्ताँ, जो चौराहे पर आयी, तो नुक्कड़ की बताइकी बन जाएगी, और कम से कम दो ज़िन्दगियों को हमेशा के लिए बेआबरू कर देगी | वैवाहिक शोषण और हिंसा के लिए इस समाज में कोई स्थान नहीं हैं, परन्तु इस आरोप की प्रामाणिकता प्राप्त करना जितना जटिल हैं, इस प्रावधान का दुरूपयोग करना उतना ही निर्बाध | जिन घटनाओं में शाररिक उत्पीड़न और घरेलु हिंसा भी शामिल हैं, वहां तो कानून में उपर्युक्त प्रावधान है ही |

इस प्रकार की खेदजनक वारदातों में, एक तरफ़ा तलाक़ का प्रावधान हो, जो अति-शीग्र गति से निर्वाहित हो | विवाह विच्छेद करने से पीड़िता को राहत दिलाने का प्रयास, तथा उसे आर्थिक जीविका का अधिकार दिया जाए | इसके अतिरिक्त, उसके पास मानसिक शोक-हरण करने हेतु सभी संभव संसाधनों की उपलब्धता भी सुनिश्चित करी जाए |

नारी समाज की नींव भी हैं, स्तम्भ भी, और इसकी आबरू से जो भी खिलवाड़ करेगा, उसे कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए | लेकिन, हमारा प्रयास सामाजिक संतुलन व विकास का भी है, समानता का भी, और निष्पक्ष्ता का भी | समाज से बड़े उसके प्रतिनिधि नहीं, कानून से उच्च कोई प्रतिभागी नहीं, और इन्साफ से बुनियादी कोई आधार नहीं |


जय हिन्द! Jai Hind!

Sunday, August 20, 2017

New India के निर्माता - स्व. राजीव गाँधी

राजीव गाँधी, भारत का वो युवा सितारा जो अपने समय से बहुत पहले रात की अँधेरी गलियों में खो गया | अपनी माँ के योग्य बेटे थे, अपने नाना के निपुण नाती, अपने पिता के उदार पुत्र थे, अपने परिवार के चहीते सदस्य, और इस देश की उम्मीद थे | वक़्त से पहले जाने वाले राजीव गाँधी के Digital India के योग्यदान की बात मैंने अनेक बार कही है | राजीव गाँधी को Digital India का निर्माता न पुकारने से, सत्य नहीं बदलेगा | पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या, हाथ कंगन को आरसी क्या |
राजीव गाँधी ने अपने पिता को बहुत कम आयु में खो दिया, तथा अपनी माँ के जीवन के उस पहलू को देखा जिससे हम और आप अनभिज्ञ हैं | इंदिरा गाँधी ने राजनीति में, अपने महिला होने का, अपने पिता की बेटी तथा अपने स्वर्गीय पति की विधवा होने का बहुधिक मूल्य चुकाया | परन्तु, उनके दोनों पुत्रों के लिए उनकी माँ का जीवन पाठ्यक्रम के समान था | राजीव गाँधी के जीवन का अध्ययन करने वाले इस बात को भली भांति स्वीकारते हैं की उन्हें राजनीती में कोई रूचि नहीं थी | भाई की असामयिक मृत्यु के बाद कांग्रेस की प्राथमिक सदस्तया ली, और वक़्त की नज़ाक़त मद्देनज़र रखते, माँ की कुर्सी संभाली | जिस युवा को सब एक शहज़ादा समझते थे, उसने जब भारत की प्राचीनता को अपने नवीन विचारों के साथ अद्वतीय निपुणता से बुना, तो वो देश के बेटे बन गए | जाति, समुदाय, धर्म, और अनेक कुंठित आयामों को दर किनारे करा, और जुट गए भारत के नए अध्याय की रचना में | विदेशी अनुभव का प्रयोग जिस निर्बाधता से उन्होंने भारत के सामाजिक व् आर्थिक बदलाव में लगाया, ये कोई आश्चर्य नहीं की उन्होंने इतने कम समय में खूब वैश्विक सम्मान और दुलार बटोरा |
सोनिया गाँधी से विवाह करना उनके खुले विचारों और बदलाव की आतुरता के नमूना है | आज हम New Indiaकी बात कर रहे हैं, जिसकी नींव राजीव गाँधी ने रखी थी | आज Make In India की बात करते हैं, जिस Self-Reliant India का नारा राजीव गाँधी ने दिया था | आज हम Demographic Dividend की बात करते हैं, जिसका महत्व एक प्राचीन देश के Young India को राजीव गाँधी ने बताया था | वक़्त की तहों में उनके ख्वाब दब सकते हैं, उनके विचारों का प्रभाव नहीं | Sam Pitroda को भारत ले आये, और देश की प्रगति का वास्ता देकर गली गली Telecom Revolution लाये, ऐसे थे राजीव गाँधी |
राजनीतिक विश्लेषकों ने राजीव गाँधी को Bofors का चेहरा बना दिया, और विपक्ष ने उन्हें शाह बानो का गुनहगार | आलोचकों को उनके बयान "जब एक बड़ा पेड़ गिरता है...." का ऐसा जुनून है, कि खैर…| आज लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ अपनी नैतिकता खो चुका हैं, और सत्ता की गोदी में खेल रहा है, शायद इसलिए मेरे जैसे आम नागरिक को अपनी आवाज़ उठा कर राजीव गाँधी का प्रतिबिम्ब New India के New Youth को देना पड़ रहा  है | इन बुद्धिजीवियों को ये याद दिलाना अपरिहार्य है, की नर नश्वर है, उसकी छवि दाग प्रवृत्त, परन्तु उसके विचार, उसकी सोंच, उसका अस्तित्व अजर अमर है |
कर लो लाख कोशिश तुम हमें मिटाने की, पत्थरों की लकीरें पानी से नहीं मिटती |

जय हिन्द |

Thursday, August 17, 2017

यह मेरा हंदुत्व है, यह मेरे दिव्य राम है, यह मेरी निष्ठावान भक्ति है

क्या आपको कभी लगता है कि 33 crore देवी देवताओं वाला, विश्व का लोक प्रिय धर्म, हिंदुत्व खतरे में है? अगर हाँ, तो समय है आत्म चिंतन का | आपका डर व्यर्थ नहीं है परन्तु वैध भी नहीं | आज आपकी चिंता का एक बड़ा कारण है वो समुदाय जिसने हमारे उदार हिंदुत्व को अपनी बपौती समझ लिया है |
क्या प्रभु राम के विशाल अस्तित्व को कोई भी शक्ति या विचारधारा छू सकती है? नहीं |
क्या प्रभु राम को हम कुछ गज ज़मीन में समेट सकते हैं? नहीं |
क्या प्रभु राम की शक्ति को मंदिर में बैठी ४ फुट की मूर्ती कैद कर सकती है? नहीं |
क्या प्रभु राम की असीम माया को कोई एक रंग बखान सकता है? नहीं |
क्या प्रभु ने कभी सिया के जीवन में बंदिशें डाली? नहीं |
क्या प्रभु ने कभी अपनी प्रजा - परिवार को किसी नियम के लिए बाध्य करा? नहीं |
क्या प्रभु ने उस धोभी को देश द्रोही पुकारा? नहीं |
अगर प्रभु तुम्हारे आराध्य हैं, तो हर प्राणी को गले लगाओ |
अगर प्रभु तुम्हारे आराध्य हैं, तो अपने आलोचकों को भी सम्मान दो |
अगर प्रभु तुम्हारे आराध्य हैं, तो अपनी बहू बेटी पत्नी को अधिकार दो |
अगर प्रभु तुम्हारे आराध्य हैं, तो निजी जीवन की मर्यादा स्वीकारो |
अगर प्रभु तुम्हारे आराध्य हैं, तो प्रभु की शक्ति पर विश्वास रखो |
अपनी भक्ति को कुछ ठेकेदारों को मत बेचो | हिंदुत्व की अविरल धारा अनवरत है, महाकाय है, सर्व-भूत है |
जब सिन्दूरी टीका लगाते हो, तो वह सिर्फ एक प्रतीकात्मक क्रिया नहीं है | सिया का सिन्दूर सिन्दूरी था, तो भक्त हनुमान ने स्वयं को सिन्दूरी रंग लिया, परन्तु सभी वानरों के ऊपर सिन्दूरी रंग नहीं थोपा | ये भक्ति है |
जब हनुमान ने रावण का वध नहीं करा, तो हम कौन होते है अपने प्रभु के सम्मान की ठेकेदारी करने वाले?
हिंदुत्व तो जीवन का सार है, इसे भला किसका खतरा? तुम अपनी भक्ति करो, कर्म करो, राम जी करेंगे बेड़ा पार |
यह मेरा हंदुत्व है, यह मेरे दिव्य राम है, यह मेरी निष्ठावान भक्ति है ||
जय सिया राम !

Wednesday, June 14, 2017

राष्ट्र ऋषि मोदी चुप क्यों हैं ?



राष्ट्र ऋषि मोदी की लहर जब चली, तब भारत में एक नयी ऊर्जा का आगमन हुआ | लोग बदलाव के लिए बेकरार थे, और जब किसी ने उन्हें उम्मीद की कुछ किरणों का दिलासा दिया, तो उन्होंने अपना सब कुछ (विचार, धर्म, आर्थिक सीमाएं, व्यवसाय, उम्र, सामाजिक परिस्थितियां) किनारे कर, अपने विश्वास का मत नरेंद्र दामोदर मोदी को दिया | मनमोहन सिंह की चुप्पी से जनता उक्ता चुकी थी | उन्हें एक प्रधान चाहिए था, जो सुने भी और बोले भी | विधि की विडंबना कुछ ऐसी हुई, राष्ट्र ऋषि बोलते हैं पर सुनते नहीं | उनके बोलने का रवैया भी कुछ विचित्र है | जहां पूर्व प्रधान मंत्री मौन थे, तो राष्ट्र ऋषि बड़ी चतुरता से घटनाओं का चयन करते हैं, और सहूलियत के हिसाब से खंडन करते है तथा सांत्वना देते हैं | उनकी सांत्वना और चेतना, दोनों ही विदेशी है...शायद इसीलिए उन्होंने जापान में कहा था, कि "२०१४ के पूर्व, भारतीय अपने भारतीय होने पर शर्मिंदा होते थे, और इसलिए देश से पलायन करते थे"| तो आखिर कब, क्यों, और किस के साथ बोलते हैं राष्ट्र ऋषि ?  

बदलाव के मसीहा को गद्दी पर बैठे ३ साल हो गए | तो कब कब कही है राष्ट्र ऋषि ने अपने मन की बात ?

लंदन में हुए विस्फोट की आलोचना Twitter पर करते हैं, और सहारनपुर पर चुप्पी साध लेते हैं | पाकिस्तान में अकस्मात् दौरा करते हैं, पर कश्मीर पर चुप हो जाते हैं |

मंदसौर की घटना में मारे गए नागरिक किसान थे, जिनके पास न विद्या थी, न बाहुबल.. उनकी मौत का खंडन करने से कोई मुनाफा नहीं था... आखिर आप चतुर नेता जो ठहरे | आत्म सुरक्षा के लिए जब पुलिस गोली चलाती है, तो कमर के नीचे चलाती है, मंदसौर में तो किसानो की छाती को छलनी कर दिया गया, आप चुप रहे | 
धरना देने वालों को राष्ट्र ऋषि ने अराजक बुलाया था, और आज जब शिवराज ने अपनी ही सरकार के विरूद्ध उपवास करा, तो आप चुप रहे |जब भरी सभा में एक किसान ने आत्महत्या करी थी, तब सब भाजपा के नेता उसके परिवार से मिलने गए थे | आज बिना किसी वजह के, नेताओं को किसानों के परिवार से मिलने से रोका जा रहा है, और आप चुप हैं | 
उत्तर प्रदेश में चलती ट्रेन में एक महिला का बलात्कार होता है, और प्रशासन उस दरिंदे की खातिरदारी करता है, और आप चुप हैं | हो सकता है, इस महिला ने अपने परिवार से लड़ कर, अपने विश्वास का मत २०१४ और २०१७ में आपको दिया हो, और बदले में आपने उसे क्या दिया, दो शब्द की निंदा भी नहीं | 
पहलू खान को सरे आम मौत के घात उतारा गया | राजस्थान के गृह मंत्री ने पहले तो घटना की पुष्टि करने से इंकार करा, और फिर हिंसा को औचित्य साबित करने का भरसक प्रयास | हो सकता है, पहलू खान ने २०१४ में कमल पर मोहर लगायी हो, पर आप चुप रहे |
निजी अनुभव का बयान करते हैं | रोज़ Twitter पर गालियां देने वाले नए दोस्त मिलते है | अफ़सोस की बात है, उन असभ्य भाषावादियों को आप Twitter पर follow करते हैं | जो आपकी पूजा करते हैं, उनको आप अपने व्यवहार पर नयंत्रण करने का आदेश देंगे, तो वो अवश्य मानेंगे, पर आप तो चुप हैं |
आप विधान सभा चुनावों में जाते हैं, और जनता आप पर फूल बरसाती है | उसी जनता पर जब जब आपके भक्त डंडे बरसाते हैं, आप चुप रहते हैं | 
पत्रकार प्रश्न पूछते हैं, तो अमित शाह उन्हें फटकार कर चुप करा देते हैं | सभाओं में दर्शकों को सवालों की पर्चियां बांटी जाती हैं | स्वतंत्रता से इतनी घबराहट क्यों? स्वतंत्र विचार, स्वतंत्र लेखन, स्वतंत्र पत्रकारिता, स्वतंत्र जीवन - क्यों आप सामाजिक स्वतंत्रता को अपाहिज कर रहे हैं ? क्या राष्ट्रवाद में स्वतंत्रता एक बुरी आदत है, जिसके कारण किसी राष्ट्रवादी दावेदार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गोता नहीं लगाया? 
किसी की न सुन्ना, अपने मन की करना, अपने मन की कहना - प्रधान सेवक की आदतें प्रधान तानाशाह जैसी? विकास के आदर्शों से हटकर अब आपका लक्ष्य, सत्ता और जीत लगता है | परिप्रेक्ष्य सकारात्मक हो, तो एक मामूली कार्यकर्ता को प्रधान मंत्री बनाता है; नकारात्मक हो, तो विभीषण को देश द्रोही | 
आप लोगों के प्रश्नो का उत्तर नहीं देते, पर अपनी मन की बात हर महीने हमें सुनाते हैं | या तो हमारे मन की बात का कोई मोल नहीं, या फिर आपको हमारी बात सुनने में कोई रूचि नहीं? बात कोई भी हो, जनता के मन में प्रश्नो का उफान है, और आपके पास शब्दों का अकाल | 

भाषण तुम्हारा शासन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | Twitter तुम्हारा प्रशासन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | विदेश यात्रा तुम्हारी व्यस्तता का वाहन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | संसद तुम्हारा अखाड़ा नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | कोई भारतीय तुम्हारा दस नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | संविधान तुम्हारा निजी घोषणापत्र नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | | इतिहास तुम्हारा काल्पनिक उपन्यास नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | 

#जयहिन्द #JaiHind

Thursday, March 9, 2017

अपने नारित्व का त्यौहार मना कर तो देखो !!

हर घर को तुमने सजाया है,
कभी खुद को संवार कर तो देखो ||
माँ बेटी पत्नी जननी, हर रिश्ता तुम्हारा है 
कभी खुद को निभा कर तो देखो ||
कुछ अजब सा सुकून है अपनों के बीच,
कभी खुद के साथ वक़्त बिता कर तो देखो ||
हर बुलंदी को तुमने छुआ,
कभी खुद पंख फैला कर तो देखो ||
हर परीक्षा को तुमने स्वीकारा,
कभी खुद को अग्नि मान कर तो देखो ||
समाज के तिरसकार में संयम तुमने बनाया,
कभी खुद को इन्साफ दिलाकर तो देखो || 
तेरी शक्ति को संसार सलाम करता है,
कभी खुद को सजदा करके तो देखो ||
समाज की जंजीरें बड़ी कमज़ोर है, 
कभी खुद ज़माने से बैर लेकर तो देखो ||
तुम सम्पूर्ण हो, शक्ति हो और सर्वोच्च भी,
तुम करुणा हो, मातृत्व हो और दामिनी भी,
तुम आकाश हो, कण हो, और वसुधा भी,
तुम वायु हो, अनल हो और तत्त्व भी 
कोई छेड़ नहीं सकता तेरी गति को, तेरे साहस को, तेरे स्वाभिमान को
ऐ नारी, कभी खुद को आईने में पहचान कर तो देखो
अपने हौंसलों को आज़मा कर तो देखो 
अपने नारित्व का त्यौहार मना कर तो देखो !!

Saturday, January 7, 2017

माँ तेरी क्या शक्ति?

जब देवी ने अवतार धरा,
दशों दिशाओं ने हुंकार भरा ।
देवताओं के कल्याण को आयी,
काली ने महिषासुरा को हरा ।।
नन्ही परी के पैरों की चाप से,
घर का आँगन गूँज उठा ।
धूप भी जिसे मिटा ना सकी,
वो अंधियारा लौट चला ।।
नाम घर का ले गयी शिखर पर,
हर कसौटी पर अंकित हुई ।
लड़की बेटा बनती रही,
हर अपेक्षा पूरी करती रही ।।
सफलता की उँचाई पर,
ज़माना थपकी देने लगा ।
अब तो गली वाले भी कहने लगे,
बेटी तू बेटे से थोड़ी ज़्यादा ही लगे ।।
बन गयी वो सबसे चोखी,
मात खायी एक पशु समान प्राणी से ।
रात की अनवरत गहराई में,
बस हार गयी अपने नारित्व से ।।
भूख मिट गयी पशु की,
रह गयी मात्रा हाड़ का ढाँचा ।
बेटे से तो जीत गयी,
हार गयी अपने ही नारित्व से ।।
माँ तेरे पास था खड़ग त्रिशूल,
बेटी को वांच्छित करा कवच से ।
आज तेरा स्वरूप पृथ्वी पर,
नित्य हारता है, अपने ही नारित्व से ।।
सीता को मैला समझा सभी ने,
यज्ञसैनी को रौंदा जग ने ।
सिंह सवारी जिसे कहते हैं,
आज हार गयी अपने ही नारित्व से ।।
बेटी के जन्म पर रुन्दन होता है,
क्या तू नहीं रोती जब उसका रौंदन होता है ।
क्या मंशा थी तेरी अपनी बेटी से,
यही, कि वो हार जाए अपने ही नारित्व से ।।
उत्तर ना दे पाओगी तुम अपनी ही नीति का,
हार गयी हो माँ, सम्मान अपनी बेटी का ।
बस नाम की कन्या, लक्ष्मी या दुर्गा,
माँ तुम हार रही हो…
हर पल, हर क्षण, हर गली, हर मोड़,
हाँ मां तुम हार गयी,
सृष्टि की जननी हार गयी, ना भूचाल से, ना आसुरी तत्व से..
तूने तो मात खाई है, अपने ही नारित्व से ।।