Tuesday, November 22, 2016

द्वंद सा हो जाता है

हर सुबह दिल सुकून की ख्वाइश करता है,
और दिमाग़ शौहरत की चाह में अंगड़ाई लेता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल सूरज की किरणों में गर्माता है,
और दिमाग़ गुज़रते वक़्त से बेचैन हो उठता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल उस फकीर की मदद को आतुर होता है,
और दिमाग़ उसके हालात की उधेड़ बुन में लग जाता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल पुराने लम्हे याद करता है,
और दिमाग़ दर्द की आहें भरता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल उनको माफ़ करने की सिफारिश करता है,
और दिमाग़ सज़ा के मायने समझता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल ज़रूरत के लिए रुपये कमाता है,
और दिल दौलत को ही फौलाद मानता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल आज में जीने को बेताब है,
और दिमाग़ को बस कल ही दिखता है,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दिल उम्र के फसाने को शिखर,
और दिमाग़ इसको ज़िंदगी की ढलान,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

दरिया के साहिल पर दिन ढला या चाँदनी आई,
कुछ द्वंद सा हो जाता है
दिल की धड़कन सुने या दिमाग़ की सलाह,
कुछ द्वंद सा हो जाता है

साँसें रुकती नही बस ज़िंदगी थम जाती है,
बिन धड़कन सासें भी झुलस जाती हैं,
कुछ द्वंद सा हो जाता है