राजनीति का खेल जीत गए,
सत्ता की चढ़ाई चढ़ गए,
सत्य पताका कब फेहराओगे ||
लफ़ाज़ी से उर्जित हैं ये दीवारें,
त्राहि कब उजाड़ोगे |
अनवरत वादे हुए मासूमों से,
धूर्तता कब त्यागोगे ||
कई तख़्त बैठे यहां पर,
धर्मासन कब बिछाओगे |
अनेक नेता आये इस मंच पर,
सुकर्मी से कब मिलवाओगे ||
आरोपों की झड़ी में फिसले हैं सब,
विकृत बखिया
कब उधेड़ोगे |
अनैतिकता के खारे दरिया में ,
शुचिता कब मिलाओगे ||
दुष्यंत को वक़्त की सुई ने दफ़ना
दिया,
तुम कब दुष्यंत को जगाओगे ||
तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे,
तुम तब दुष्यंत को मानोगे ||
तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे
तुम कब दुष्यंत को देखोगे,
तुम जब दुर्योधन को त्यागोगे,
तुम तब दुष्यंत को जानोगे ||
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