Sunday, September 17, 2017

जानवर हो क्या? अफ़सोस, इंसान हैं |

आज सड़क पर एक आदमी को दूसरे से, गुस्से में कहते सुना, "जानवर हो क्या", और मेरे दिल से आवाज़ आयी, काश होते | हम इंसानो को हमारे इंसान होने पर इतना फक्र क्यों होता है? ऐसा क्या हांसिल कर लेते है हम इंसान, जो चार पैरों पर चलते जानवर नहीं कर पाते?
हल्की आन, खोखली बान और झूठी शान? नसीहत देने की प्रतिभा, मुफ्त के ठाट बटोरने की अभिलाषा, और अपनी ही रिवायतों में जकड़ के दम तोड़ने की तृष्णा?

जितनी सच जानवरों की जाहिल पहचान है, उतनी ही सच उनकी सच्चाई है | वो ना तो साहिर बनने का दावा करते हैं, ना तो बात बात पर मुआफज़ा मांगते हैं | मज़हब से उनका दूर दूर तक नाता नहीं | कभी पूर्णमासी का सीधा खा कर  तो कभी बची हुई इफ्तारी से अपना पेट भर लेते हैं, | बारिश होने लगती है, तो खोज बस एक चबूतरे की होती है, फिर वह चाहे जुलाहे के घर में हो, मंदिर के दालान में, या हकीम के दवाखाने में |
जानवरों की निश्चलता और इंसानो के पेचीदेपन में रक़ाबत हो तो जीत मासूमियत की होगी, वही मासूमियत जिसे हम इंसान बहुत दूर छोड़ आये हैं | शायद आज जिस मोड़ पर हम इंसान खड़े हैं, उसके हम खुद मुश्ताहिक़ हैं |

हमने जानवरों को मारा अपनी भूख मिटाने के लिए, इंसानो को जलाया अपनी सियासत बचाने के लिए, और फिर खुदा के इतने हिस्से कर दिए, कि आज हम अपने खुदा को पहचानने में नाकाम हैं | कब हम इंसान, उस जानवर में तब्दील हो गए, जिसकी पहचान नफरत और बेदखली के काबिल थी?

हाँ जानवर आपकी हमारी तरह :

  • कपडे नहीं पहनते, लेकिन ये भी सच है, कि रेशमी परदे के पीछे अपनी सच्चाई नहीं छुपाते |
  • आलिशान घरों में नहीं रहते, लेकिन ये भी सच है, कि ज़रुरत से ज़्यादा जगह में नहीं पसरते |
  • रोज़ पेट भरने की जद्दो जहद करते हैं, लेकिन ये भी सच है, कि से अधिक नहीं खाते |
  • किसी तय ठिकाने पर नहीं मिलते, लेकिन ये भी सच है, कि ज़मीन के किसी कोने पर अपना हक़ नहीं जमाते |

जिस खुदा ने हमें इंसान बनाया, आज हम उसकी खुदाई को ललकार कर, खुद को खुदा मान बैठे हैं | हम वो हैं, जो जानवरों की बिरादरी को नीच समझते हैं, खुदा का सहूलियत से इस्तेमाल करते हैं, और इंसानियत को लापरवाही से खर्च कर, कंगाल हो चुके हैं |

आज जब हम कहते हैं, "जानवर हो क्या", तो वास्तव में इसका जवाब हैं, नहीं, हम जानवर नहीं हैं, हम इंसान हैं, जिन्हे अपने इंसान होने भर पर गुरूर है |
अफ़सोस है, हम जानवर, कभी हो भी नहीं सकते हैं |

1 comment:

Mayank Kapoor said...

True indeed.. very well worded.