राष्ट्र ऋषि मोदी की लहर जब चली, तब भारत में एक नयी ऊर्जा का आगमन हुआ | लोग बदलाव के लिए बेकरार थे, और जब किसी ने उन्हें उम्मीद की कुछ किरणों का दिलासा दिया, तो उन्होंने अपना सब कुछ (विचार, धर्म, आर्थिक सीमाएं, व्यवसाय, उम्र, सामाजिक परिस्थितियां) किनारे कर, अपने विश्वास का मत नरेंद्र दामोदर मोदी को दिया | मनमोहन सिंह की चुप्पी से जनता उक्ता चुकी थी | उन्हें एक प्रधान चाहिए था, जो सुने भी और बोले भी | विधि की विडंबना कुछ ऐसी हुई, राष्ट्र ऋषि बोलते हैं पर सुनते नहीं | उनके बोलने का रवैया भी कुछ विचित्र है | जहां पूर्व प्रधान मंत्री मौन थे, तो राष्ट्र ऋषि बड़ी चतुरता से घटनाओं का चयन करते हैं, और सहूलियत के हिसाब से खंडन करते है तथा सांत्वना देते हैं | उनकी सांत्वना और चेतना, दोनों ही विदेशी है...शायद इसीलिए उन्होंने जापान में कहा था, कि "२०१४ के पूर्व, भारतीय अपने भारतीय होने पर शर्मिंदा होते थे, और इसलिए देश से पलायन करते थे"| तो आखिर कब, क्यों, और किस के साथ बोलते हैं राष्ट्र ऋषि ?
बदलाव के मसीहा को गद्दी पर बैठे ३ साल हो गए | तो कब कब कही है राष्ट्र ऋषि ने अपने मन की बात ?
लंदन में हुए विस्फोट की आलोचना Twitter पर करते हैं, और सहारनपुर पर चुप्पी साध लेते हैं | पाकिस्तान में अकस्मात् दौरा करते हैं, पर कश्मीर पर चुप हो जाते हैं |
मंदसौर की घटना में मारे गए नागरिक किसान थे, जिनके पास न विद्या थी, न बाहुबल.. उनकी मौत का खंडन करने से कोई मुनाफा नहीं था... आखिर आप चतुर नेता जो ठहरे | आत्म सुरक्षा के लिए जब पुलिस गोली चलाती है, तो कमर के नीचे चलाती है, मंदसौर में तो किसानो की छाती को छलनी कर दिया गया, आप चुप रहे |
धरना देने वालों को राष्ट्र ऋषि ने अराजक बुलाया था, और आज जब शिवराज ने अपनी ही सरकार के विरूद्ध उपवास करा, तो आप चुप रहे |जब भरी सभा में एक किसान ने आत्महत्या करी थी, तब सब भाजपा के नेता उसके परिवार से मिलने गए थे | आज बिना किसी वजह के, नेताओं को किसानों के परिवार से मिलने से रोका जा रहा है, और आप चुप हैं |
उत्तर प्रदेश में चलती ट्रेन में एक महिला का बलात्कार होता है, और प्रशासन उस दरिंदे की खातिरदारी करता है, और आप चुप हैं | हो सकता है, इस महिला ने अपने परिवार से लड़ कर, अपने विश्वास का मत २०१४ और २०१७ में आपको दिया हो, और बदले में आपने उसे क्या दिया, दो शब्द की निंदा भी नहीं |
पहलू खान को सरे आम मौत के घात उतारा गया | राजस्थान के गृह मंत्री ने पहले तो घटना की पुष्टि करने से इंकार करा, और फिर हिंसा को औचित्य साबित करने का भरसक प्रयास | हो सकता है, पहलू खान ने २०१४ में कमल पर मोहर लगायी हो, पर आप चुप रहे |
निजी अनुभव का बयान करते हैं | रोज़ Twitter पर गालियां देने वाले नए दोस्त मिलते है | अफ़सोस की बात है, उन असभ्य भाषावादियों को आप Twitter पर follow करते हैं | जो आपकी पूजा करते हैं, उनको आप अपने व्यवहार पर नयंत्रण करने का आदेश देंगे, तो वो अवश्य मानेंगे, पर आप तो चुप हैं |
आप विधान सभा चुनावों में जाते हैं, और जनता आप पर फूल बरसाती है | उसी जनता पर जब जब आपके भक्त डंडे बरसाते हैं, आप चुप रहते हैं |
पत्रकार प्रश्न पूछते हैं, तो अमित शाह उन्हें फटकार कर चुप करा देते हैं | सभाओं में दर्शकों को सवालों की पर्चियां बांटी जाती हैं | स्वतंत्रता से इतनी घबराहट क्यों? स्वतंत्र विचार, स्वतंत्र लेखन, स्वतंत्र पत्रकारिता, स्वतंत्र जीवन - क्यों आप सामाजिक स्वतंत्रता को अपाहिज कर रहे हैं ? क्या राष्ट्रवाद में स्वतंत्रता एक बुरी आदत है, जिसके कारण किसी राष्ट्रवादी दावेदार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गोता नहीं लगाया?
किसी की न सुन्ना, अपने मन की करना, अपने मन की कहना - प्रधान सेवक की आदतें प्रधान तानाशाह जैसी? विकास के आदर्शों से हटकर अब आपका लक्ष्य, सत्ता और जीत लगता है | परिप्रेक्ष्य सकारात्मक हो, तो एक मामूली कार्यकर्ता को प्रधान मंत्री बनाता है; नकारात्मक हो, तो विभीषण को देश द्रोही |
आप लोगों के प्रश्नो का उत्तर नहीं देते, पर अपनी मन की बात हर महीने हमें सुनाते हैं | या तो हमारे मन की बात का कोई मोल नहीं, या फिर आपको हमारी बात सुनने में कोई रूचि नहीं? बात कोई भी हो, जनता के मन में प्रश्नो का उफान है, और आपके पास शब्दों का अकाल |
भाषण तुम्हारा शासन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | Twitter तुम्हारा प्रशासन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | विदेश यात्रा तुम्हारी व्यस्तता का वाहन नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | संसद तुम्हारा अखाड़ा नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | कोई भारतीय तुम्हारा दस नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | संविधान तुम्हारा निजी घोषणापत्र नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है | | इतिहास तुम्हारा काल्पनिक उपन्यास नहीं, क्यूंकि ये लोकतंत्र है |
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