हर घर को तुमने सजाया है,
कभी खुद को संवार कर तो देखो ||
माँ बेटी पत्नी जननी, हर रिश्ता तुम्हारा है
कभी खुद को निभा कर तो देखो ||
कुछ अजब सा सुकून है अपनों के बीच,
कभी खुद के साथ वक़्त बिता कर तो देखो ||
हर बुलंदी को तुमने छुआ,
कभी खुद पंख फैला कर तो देखो ||
हर परीक्षा को तुमने स्वीकारा,
कभी खुद को अग्नि मान कर तो देखो ||
समाज के तिरसकार में संयम तुमने बनाया,
कभी खुद को इन्साफ दिलाकर तो देखो ||
तेरी शक्ति को संसार सलाम करता है,
कभी खुद को सजदा करके तो देखो ||
समाज की जंजीरें बड़ी कमज़ोर है,
कभी खुद ज़माने से बैर लेकर तो देखो ||
तुम सम्पूर्ण हो, शक्ति हो और सर्वोच्च भी,
तुम करुणा हो, मातृत्व हो और दामिनी भी,
तुम आकाश हो, कण हो, और वसुधा भी,
तुम वायु हो, अनल हो और तत्त्व भी
कोई छेड़ नहीं सकता तेरी गति को, तेरे साहस को, तेरे स्वाभिमान को
ऐ नारी, कभी खुद को आईने में पहचान कर तो देखो
अपने हौंसलों को आज़मा कर तो देखो
अपने नारित्व का त्यौहार मना कर तो देखो !!
कभी खुद को संवार कर तो देखो ||
माँ बेटी पत्नी जननी, हर रिश्ता तुम्हारा है
कभी खुद को निभा कर तो देखो ||
कुछ अजब सा सुकून है अपनों के बीच,
कभी खुद के साथ वक़्त बिता कर तो देखो ||
हर बुलंदी को तुमने छुआ,
कभी खुद पंख फैला कर तो देखो ||
हर परीक्षा को तुमने स्वीकारा,
कभी खुद को अग्नि मान कर तो देखो ||
समाज के तिरसकार में संयम तुमने बनाया,
कभी खुद को इन्साफ दिलाकर तो देखो ||
तेरी शक्ति को संसार सलाम करता है,
कभी खुद को सजदा करके तो देखो ||
समाज की जंजीरें बड़ी कमज़ोर है,
कभी खुद ज़माने से बैर लेकर तो देखो ||
तुम सम्पूर्ण हो, शक्ति हो और सर्वोच्च भी,
तुम करुणा हो, मातृत्व हो और दामिनी भी,
तुम आकाश हो, कण हो, और वसुधा भी,
तुम वायु हो, अनल हो और तत्त्व भी
कोई छेड़ नहीं सकता तेरी गति को, तेरे साहस को, तेरे स्वाभिमान को
ऐ नारी, कभी खुद को आईने में पहचान कर तो देखो
अपने हौंसलों को आज़मा कर तो देखो
अपने नारित्व का त्यौहार मना कर तो देखो !!
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