किसी ने हम से कहा, रिश्तों के बंधन में सुकून है,
पर बंधन में ही तो हर ख्वाब दम तोड़ देता है |
रिश्तों की पैमाइश उनकी पकड़ से करते हैं,
और दरमियान की मुहब्बत की आज़माइश करते हैं ||
जिस बंधन को फतह करने की गुफ्तगू करते हैं,
उसको गिरोह में जकड़ने ना दो |
हर पल को बुनते रहो सुकून से,
रिश्तों को पकड़ मिलेगी बुनाई के झरोखों से ||
हमें इल्म भी नहीं होता कब रिश्ते दम तोड़ देते हैं,
मतलब तो बस उनकी पेश से होता है |
बयान करता बेजान बंधन है,
बुझ गया है, इसलिए बोझ बन गया है ||
नासमझी के बंधन डोरियों से बाँधते हैं,
खिंचाव के तनाव के मोहताज होते हैं |
रिश्ते:
खुदा की रहमत हैं, माँ की दुआ हैं,
मासूम की ज़िद्द हैं, फ़िज़ा की नसीम हैं,
रात की परछाई है, चाँद की नर्मी है ||
उड़ने दो आसमान की बदहवास ऊँचाई में,
गिरने दो समुंदर की बेकाबू गहराई में |
बहकने दो बारिश की मौज में,
सिमटने दो वक़्त की तहों में ||
नाज़ुक है ये सफ़र ए रिश्तों का,
जिसे बंधन के रिश्ते निभा ना पाएंगे |
परवान चढते हैं रिश्तों के बंधन,
बंधन नहीं कोई जिनमें ||
सहेज लो इनको मुहब्बत की गर्मी में, ठिठुर ना जाए किसी ओढनी की गाँठो में
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