जिस
प्रतिभाशाली पत्रकार को हमने खोया उसका नाम तो गौरी था, लेकिन साहस दुर्गा का था | निडरता
का प्रतीक, गौरी लंकेश के दोस्त कम थे, समर्थक कई,
और दुश्मन अनेक | पी लंकेश,
जो पत्रकारिता में एक
चिरस्थायी नाम हैं, उनकी बेटी थी गौरी लंकेश | गौरी बंगलुरु में अपनी साप्ताहिक पत्रिका, "गौरी लंकेश पत्रिके" का सम्पादन करती थी |
पत्रकारों
और स्वतंत्र विचारों का उल्लेख करने वालों का ऐसा अंत नया नहीं है; बल्कि कई बार इन आवाज़ों को खुद उनके इस बर्बर हश्र का
ज्ञात होता है | भारत आज उस मोड़ पर आ खड़ा हुआ है, जहाँ
समाज में झूठ का बाजार गर्म है,
आलोचनात्मक आवाज़ ठंडी, कट्टरवादियों की आवाज़ मज़बूत और स्वतंत्र लेखन व्
पत्रकारिता की हुंकार निस्तब्ध |
क्यों हर उस आवाज़ को, जिसके स्वर में एक प्रश्न का अन्तर्भाव होता है, उसको विधर्मी संघ सदा के लिए शांत कर देते है? गौरी लंकेश की हत्या के पीछे असहिष्णुता तो अवश्य थी, परन्तु क्या बस इतना भर कहने से, हम अपनी ज़िम्मेदारियों से भारमुक्त हो जाते हैं ? गौरी लंकेश की हत्या, पत्रकार
जगत के लिए चेतावनी का बिगुल है |
आग मोहल्ले में लगी थी, और आज उसकी लपटों ने बगल वाले घर को भी ध्वंस कर दिया |
जिनको जान प्यारी है, वह
घर छोड़ देंगे, और जिनमें लंकेश की शूरता है, वह आग बुझा देंगे |
लोकतंत्र
का चौथा स्तम्भ होता है,
"मीडिया" | सूचना का संचार करता है, और
आम जनता की आँख और कान मीडिया
होती है | सरकार,
प्रशासन, न्यायलय - सब का काला चिट्ठाखोलने का बलबूता इस स्तम्भ पर होता है और यही संभव सामर्थ्य, मीडिया को लोकतंत्र के अखाड़े में खेलने वाले विकृत
कुकर्मियों का दुश्मन बना देता है |
ऐसा क्या होता है, जब गौरी जैसा एक निडर पत्रकार, नागरिकों में जागरूकता की मुहीम चलता है? सत्ता तिलमिला जाती है, और
इन आवाज़ों को दबाने के लिए हर सही गलत,
वैद्य-अवैद्य हथखण्डे
अपनाती है | कुछ आवाज़ें बिक जाती हैं, जिन्हें माननीय रविश कुमार गोदी मीडिया के नाम से
सम्बोधित करते हैं, और कुछ लंकेश हो जाती हैं |
गोदी मीडिया न बिकता, तो आज गौरी की कीमत लगने की बात ही नहीं
उठती |
गोदी मीडिया न बिकता, तो गौरी से चुप्पी की आस ही नहीं लगती |
गोदी मीडिया न बिकता, तो पत्रकारिता में “सत्य“ और "असत्य सत्य" की दीवार ही नहीं
खड़ी होती |
लंकेश
की मौत इस सच को दबा नहीं सकती,
कि पत्रकारिता की ताकत
बरकरार है, और सत्ता को ये बात खटकती है | अफ़सोस है,
आज कुछ लोग इस ताक़त का
सकारात्मक प्रयोग करने से डरते हैं,
कुछ हिचकिचाते हैं, और कुछ इसे बेशर्मी से बेच देते हैं |
कलम की ताक़त को सिक्कों के तराज़ू में तौलने वालों के लिए, गौरी की मृत्यु एक तकाज़ा है, आज जो तुम्हे खरीद रहे हैं, वही कल तुम्हे बेच देंगे |
किस
किस के हाथ, अपनी कलम बेचोगे, किस किस के झूले पर तुम्हारी निष्ठा झूलेगी? या हम यूं समझ लें,
पत्रकारिता, सत्ता की आवाज़ है?
गौरी की मृत्यु के
ज़िम्मेदार असहिष्णु वाहिनी नहीं,
दुकान में सजी, बिकने को आतुर,
पत्रकारिता है, जिसने इस पेशे पर नैतिकता के परे, छोटी सी कीमत लगा दी |
पत्रकारों
से अपेक्षाएं बदल गयी है |
सूचना संचार, और अपक्षपाती व्याख्या करने वाले पत्रकारों को या तो
झूठे फसादों में फसा दिया जाता है,
या घिनौने आरोप लगाकर उनको
प्रश्न चिंह्नों से दगा जाता है,
या उनको गोलियों की बौछार
में भिगो कर, सदा के लिए मौन करा दिया जाता है | आज जो गौरी के साथ हुआ, वो
कल तुम्हारे साथ होगा |
जब सत्ता बदलेगी, वह तुम्हे भी नहीं बख्शेगी |
इससे पहले पत्रकारिता के नए रवैये सर्व व्यापक हो जाएँ, और पाँच साल बाद, तुमको
भी एक वीरगति के घाट उतार दें,
थाम लो एक दूसरे का हाथ और
अपने पेशे पर लगे आपातकालीन को उखाड़ फेंको |